Internet ki Duniya - 1 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | इंटरनेट की दुनिया - भाग 1

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इंटरनेट की दुनिया - भाग 1



अदृश्य जाल


वैशाली रोज़ की तरह पार्क‌ में आकर बैठ गई। हालांकि गर्मी बहुत थी पर घर के सूनेपन से बचने का एक‌‌ अच्छा तरीका था कि वह पार्क में आकर बैठ जाए।

पार्क में बहुत लोग नहीं थे। सूरज डूबने के बाद भी इन गर्मी के दिनों में लोगों की हिम्मत घर से निकलने की नहीं होती थी। भले ही धूप ना हो पर दिनभर में सूरज सबकुछ इतना तपा देता था कि उसके जाने के बाद भी उसकी उपस्थिति का एहसास होता था।

कुछ देर वैशाली पार्क में चक्कर लगाती रही फिर आकर बेंच पर बैठ गई। अचानक उसकी आँखें भर आईं। वह पूरी कोशिश कर रही थी कि अपने आप को काबू में कर सके पर अपनी भावनाओं को रोक पाना उसके बस में नहीं था। बेंच पर बैठे हुए वह ज़ोर से रोने लगी।

"क्या बात है आंटी? आप रो क्यों रही हैं?"

एक बच्चे का सवाल सुनकर वैशाली ने अपनी आँखें पोछीं। पाँच‌ छह साल का एक लड़का गौर से उसे देख रहा था। उसे बिना कोई जवाब दिए वह उठकर अपने घर चली गई।


किशोर घर में घुसा तो पूरे घर में अंधेरा था। उसने हॉल की लाइट जलाई उसके बाद बेडरूम में चला गया। वहाँ भी अंधेरा था। वैशाली बिस्तर पर लेटी थी। किशोर ने लाइट जला दी। वैशाली के पास बैठकर उसके सर पर हाथ फेरा। वैशाली रोने लगी। किशोर उसे चुप कराने लगा। कुछ देर में वैशाली शांत हुई। वह वॉशरूम में गई और अपना मुंह धोया। बाहर आकर बोली,

"तुम फ्रेश हो जाओ। मैं चाय बनाती हूँ।"

किशोर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया। उसने कहा,

"चाय की ज़रूरत नहीं है।"

"कैसे नहीं है? थक कर आए हो। मैं चाय बनाकर लाती हूँ।"

वैशाली उठने लगी तो किशोर ने फिर उसे बैठा दिया। कुछ रुककर बोला,

"वैशाली तुम्हारा दुख मैं समझता हूँ। मैं भी तो उस दर्द से गुज़रा हूँ।"

उसने वैशाली का हाथ अपने हाथ में ले लिया। वैशाली की तरफ देखकर बोला,

"साल भर हो गया है वैशाली‌। मानता हूँ कि गम ज़िंदगी भर का है फिर भी जीना तो है ना।"

वैशाली कुछ नहीं बोली। अपनी नज़रें झुकाए चुपचाप बैठी रही। किशोर ने कहा,

"खुद को संभालो वैशाली। तुम अपने दर्द में इस तरह डूबी रहती हो कि किसी चीज़ का होश नहीं रहता है। मैं घर आया तो दरवाज़ा खुला पड़ा था। कोई भी घर में घुस सकता था। कुछ भी कर सकता था। वैशाली अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो...."

वैशाली बीच में ही बोल पड़ी,

"हो जाए तो अच्छा है ना। अब नहीं होता है मुझसे बर्दाश्त। मर जाऊँ तो छुट्टी मिले।"

"चुप करो वैशाली। ये कहते हुए तुमने मेरे बारे में नहीं सोचा। एक और दुख मैं नहीं झेल पाऊँगा। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है। पर इंसान हूँ मैं। एक सीमा है मेरी बर्दाश्त की भी।"

किशोर ने अपनी बात कहकर वैशाली को गले लगा लिया। कुछ देर उसे गले लगाए बैठा रहा। उसने कहा,

"दवाएं ले रही हो?"

वैशाली चुप रही। किशोर ने कहा,

"वैशाली समझने की कोशिश करो। दवाएं नहीं लोगी तो ठीक नहीं होगी। हर सेशन में डॉ. माधव कहते हैं ना कि दवाएं लो और अपना दिमाग कहीं और लगाने की कोशिश करो। उनकी बात मान लो। मेरी खातिर। तुम्हारे अलावा कोई नहीं है मेरा।"

उसने वैशाली का माथा चूमकर कहा,

"मानोगी ना मेरी बात।"

वैशाली ने सर हिलाकर हाँ कहा।


किशोर ने वैशाली को खाना खिलाने के बाद खुद दवाएं खिलाईं। जब वह सोने के लिए लेटी तो उसका सर तब तक सहलाता रहा जब तक उसे नींद नहीं आ गई। वह सोती हुई वैशाली को देख रहा था। उसके मन में आ रहा था कि इस एक साल में वह वैशाली जाने कहाँ खो गई जिससे उसने शादी की थी‌। वह वैशाली जो उसे तसल्ली देती थी कि घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा आज अपने में ही खोई रहती है। बात बात में आंसू बहाती है। उसने एक आह भरते हुए धीरे से कहा,

"सबकुछ एक झटके में बर्बाद हो गया। ये घर जो कभी हंसी से गूंजता था आज मनहूस सी खामोशी में डूब गया है। वरुण तुमने एक बार भी नहीं सोचा‌ कि हमारा क्या होगा?"

कहते हुए उसकी भी रुलाई छूट पड़ी। वह संभल कर उठा और बेडरूम से बाहर निकल गया। हॉल में आकर रोने लगा। उसे वरुण की याद आ रही थी। उसकी कटी हुई कलाई और फर्श पर बिखरा खून सब उसकी आँखों के सामने उसी तरह आ रहा था जैसे उस दिन उसने देखा था। उस लम्हे को याद करके वह विचलित हो रहा था। उसके मुंह से निकला,

"गलती हमारी भी थी। तुम्हें वो सबकुछ दिया जो तुमने मांगा। पर तुम अपने मन की बात बेझिझक हम दोनों से कह पाते ये विश्वास तुम्हें नहीं दे पाए। काश की तुमने एक बार बात की होती। इतनी लंबी चिठ्ठी लिखकर अपने हाथ की नस काट ली। उससे पहले वो चिठ्ठी हमें पढ़ने देते। नस काटने की नौबत ना आती।"


वरुण किशोर और वैशाली की इकलौती संतान था। वह टेंथ क्लास में था। दोनों उसे बहुत प्यार करते थे। 

किशोर की एक टैक्स कंसल्टेंसी फर्म थी जिसमें वह अपने दोस्त के साथ पार्टनर था। वैशाली एक कंपनी में एच आर मैनेजर थी। दोनों के पास वरुण को देने के लिए वक्त की कमी थी। उसकी भरपाई दोनों उसकी हर मांग को पूरा करके करते थे।

वरुण को गैजेट्स का शौक था।‌ वह इंटरनेट पर नए गैजेट्स के बारे में खोजता रहता था। अपने मम्मी पापा से उन्हें दिलाने के लिए कहता था। अगर उन लोगों के बस में होता था तो वह उसे मना नहीं करते थे। बचपन से ही वरुण पढ़ने में होशियार था। आगे चलकर वरुण ने इंजीनियरिंग में जाने का फैसला किया था जिससे वह नए गैजेट्स खुद बना सके।

पढ़ाई के अलावा वह और भी गतिविधियों में भाग लेता था। लेकिन पिछले तीन साल में से उसे एक नया शौक लग गया था। वह सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाता था। उसका अपना एक यू ट्यूब चैनल था जिस पर करीब तीन हज़ार सब्सक्राइबर थे। उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर बहुत से फॉलोअर थे। 

इस‌ सबके चलते वह बहुत पॉपुलर हो गया था। स्कूल में बच्चे और टीचर्स सभी उसकी तारीफ करते थे।

शुरू में सब ठीक चला। किशोर और वैशाली भी उसकी इस सफलता से खुश थे। पर धीरे धीरे वरुण के ऊपर उसकी कंटेंट क्रिएटर की छवि हावी होने लगी। पढ़ाई से उसका मन भटकने लगा था।

वरुण का ध्यान अब अपने चैनल को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने में लगा रहता था। उसे अधिक से अधिक फॉलोअर्स बनाने का जुनून चढ़ गया था। ये बात किशोर और वैशाली दोनों को ही ठीक नहीं लग रही थी। उन्होंने उसे समझाया था कि कंटेंट बनाकर अपलोड करने तक ठीक है।‌ उसके बाद इस बात के लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है कि सब्सक्राइबर्स या फॉलोअर्स बढ़ें। कंटेंट अगर अच्छा होगा तो लोग खुद देखेंगे पर उसके लिए सबकुछ भूल जाना ठीक नहीं है। अभी उसकी उम्र पढ़ने की है। उसे अपना इंजीनियर बनने का सपना पूरा करना है जिससे नए गैजेट्स बना सके। उसे कंटेंट बनाने को सिर्फ एक हॉबी की तरह लेना चाहिए। अपनी ज़िंदगी का अहम मकसद नहीं बनाना चाहिए। 

अपने मम्मी पापा के समझाने के बावजूद भी वरुण मानने को तैयार नहीं था। अब वह अपनी दलील देता था। उसका कहना था कि पढ़ लिखकर नौकरी करके पैसा कमाना है।‌ वही काम मैं अभी कर सकता हूँ अगर मेरा चैनल अच्छी तरह से बढ़ जाए तो। किशोर ने कई बार उसे समझाया था कि अभी उसकी उम्र पैसों के‌ बारे में सोचने की नहीं है। उसे पढ़ने लिखने और खेलने में ध्यान देना चाहिए।

वरुण को पहले तो खूब तारीफ और प्रसिद्धि मिली थी पर बाद में लोगों ने उसके कंटेंट पर गलत‌ टिप्पणियां शुरू कर दी थीं। कंटेंट के साथ साथ उसके बारे में भी गलत‌ बात करते थे। उसके चाहने वाले कम होने लगे थे। इससे वरुण बहुत अधिक दुखी था। एक बार फिर उसके मम्मी पापा ने उसे समझाया। उस पर दबाव डालकर उसे उस सबसे दूर करने की कोशिश की जिससे वह अपना मन दूसरी तरफ लगा सके। कुछ दिन तो वरुण भी अपने चैनल से दूर रहा पर अधिक दिन ऐसा नहीं कर पाया।

उसने अपने मम्मी पापा को समझाया कि वह अब ठीक है। उसे फिर से कंटेंट बनाने दें। इस बार वह सारे आलोचकों को शांत कर देगा। एक बार फिर लोग उसे चाहने लगेंगे।‌ वरुण ने फिर कंटेंट बनाना शुरू कर दिया। उसे कुछ सफलता भी मिली। वह अब पहले की तरह खुश रहने लगा था।

किशोर और वैशाली भी इस बात से खुश थे। दोनों अपने काम में फिर व्यस्त हो गए। वरुण अब अधिकतर समय अपने कमरे में रहता था। उसका कहना था कि बोर्ड एग्ज़ाम नज़दीक आ रहे हैं उसे पढ़ाई करनी रहती है। 


प्री बोर्ड एग्ज़ाम में कुछ ही दिन बचे थे। वरुण आजकल तनाव में रहता था। वैशाली ने उससे पूछा तो उसने कहा कि एग्ज़ाम की चिंता है। कोई बड़ी बात नहीं है। वैशाली ने उसे समझाया कि चिंता करने से कुछ नहीं होगा। वह बस मन लगाकर पढ़ाई करे।


अगले दिन इंग्लिश का प्री बोर्ड एग्ज़ाम था। वरुण अपने कमरे में था। किशोर उसे डिनर के लिए बुलाने गया था। उसने दरवाज़े पर नॉक करके कहा कि आकर खाना खा लो। वरुण ने कोई जवाब नहीं दिया। किशोर को अजीब लगा। उसने फिर नॉक करके खाना खाने के लिए बुलाया। कोई जवाब नहीं आया। वरुण अंदर से दरवाज़ा बंद रखता था। कोई जवाब ना मिलने पर किशोर परेशान हो गया। वैशाली भी ये सब देखकर चिंतित थी। किशोर ने दरवाज़े को धक्का मारकर तोड़ा। अंदर जाते ही जो नज़ारा उसने देखा वो आज तक उसे परेशान करता था। 

वरुण की कलाई कटी हुई थी। फर्श पर खून पड़ा था।


अस्पताल ले जाने के कुछ ही देर बाद वरुण की मौत हो गई।


किशोर और वैशाली के लिए वरुण का आत्महत्या कर लेना एक बहुत बड़ा धक्का था। उस धक्के से किशोर बड़ी मुश्किल से उबरा था पर वैशाली झेल नहीं पाई थी। वह बीमार रहने लगी। उसने नौकरी छोड़ दी।


वरुण ने आत्महत्या से पहले जो चिठ्ठी लिखी थी उसे पढ़ने के बाद दोनों पति पत्नी के लिए इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल हो गया था कि उनका बेटा किस मानसिक यातना से गुज़र रहा था। ये सोचकर उनका कालेजा फटता था कि उसने ये सब कैसे सहा होगा। ये बात और परेशान करती थी कि वरुण ने उस सबसे परेशान होकर आत्महत्या कर ली पर उन लोगों को कुछ नहीं बताया।


चिठ्ठी में जो लिखा था वो बहुत भयानक था। किशोर हॉल में बैठा उसे याद कर रहा था।‌ 


वरुण ने चिठ्ठी में लिखा था कि पिछले एक महीने से वह साइबर बुलिंग का शिकार था। उसके एक सीनियर ने उसका एक वीडियो इंटरनेट पर डाल दिया था। उसके बाद से लोग उसे ट्रोल कर रहे थे।‌ 


बारहवीं क्लास में पढ़ने वाला आदर्श भी एक कंटेंट क्रिएटर था। उसका भी यू ट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम अकाउंट था। उसके भी फॉलोअर्स थे पर स्कूल में एक कंटेंट क्रिएटर के रूप में लोग वरुण को ही अधिक पसंद करते थे। ये बात आदर्श को अच्छी नहीं लगती थी। बीच में जब वरुण की प्रसिद्धि कम होने लगी तो उसे बहुत खुशी हुई थी। वरुण ने अपनी मेहनत से एक बार फिर वो मुकाम हासिल कर लिया जो पहले था। इस बात से आदर्श चिढ़ गया था। उसने वरुण को सबक सिखाने का निश्चय किया था।‌ 

आदर्श और उसके दोस्तों ने एक प्लान बनाया। प्लान के हिसाब से ग्यारहवीं में पढ़ने वाले रंजन नाम के एक लड़के ने वरुण को अपनी बर्थडे पार्टी पर घर बुलाया। उस समय घर पर रंजन के माता पिता नहीं थे। वरुण नहीं जानता था कि वहाँ आदर्श भी मौजूद होगा। इसलिए वह चला गया था। 

वहाँ आदर्श ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर वरुण को खूब परेशान किया।‌ उसके कपड़े उतरवाए। उसके साथ मार पीट की। वरुण अकेला था। वह रो रहा था। गिड़गिड़ा कर छोड़ देने को कह रहा था पर उन लोगों ने एक नहीं सुनी। उन्होंने वरुण का बिना कपड़ों के रोते हुए वीडियो बना लिया। 

आदर्श ने एक फेक आईडी बनाकर वीडियो को इंटरनेट पर डाल दिया। उसने और उसके दोस्तों ने पूरे स्कूल में उसे सर्कुलेट कर दिया। धीरे धीरे वीडियो वाइरल हो गया। उस वीडियो पर वरुण को बहुत ही गंंदे और भद्दे कमेंट आते थे। एक महीने तक वह किसी तरह वो सब झेलता रहा। उसके बाद जब सहा नहीं गया तो उसने अपनी कलाई की नस काट कर आत्महत्या कर ली।


चिट्ठी में वरुण ने आदर्श और उसके साथियों का नाम लिया था। उन्हें पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। 

दोषियों को सज़ा मिल गई थी पर इससे किशोर और वैशाली का दर्द कम नहीं हुआ था। दोनों के दिल में गहरा ज़ख्म था।‌ वैशाली तो अभी भी संभल नहीं पाई थी। उसे लगता था कि माँ होने के नाते उससे चूक हो गई। वह अपने बेटे का दर्द समझ नहीं पाई। उसके एग्ज़ाम की चिंता बताने को सच मानकर चुप बैठ गई। 

किशोर उसे समझाता था कि अगर गलती थी तो उसकी अकेले की नहीं थी। वह भी वरुण से कुछ पूछ नहीं पाया। उन दोनों ने उसे ये सोचकर अकेला छोड़ दिया कि यही उसके लिए ठीक है।‌ 

वैशाली की दिन पर दिन बिगड़ती हालत को देखकर किशोर उसका इलाज मनोचिकित्सक डॉ. माधव से करवा रहा था पर वैशाली उनकी सलाह भी नहीं मानती थी। वह अंदर ही अंदर घुल रही थी। अपने बेटे को खो देने के बाद किशोर उसे नहीं खोना चाहता था। इसलिए परेशान था।


किशोर रात भर सो नहीं पाया था। सुबह कुछ देर के लिए आँख लगी थी पर रोज़ के अलार्म से टूट गई। वह उठकर बाहर आया तो वैशाली उसे कहीं दिखाई नहीं पड़ी। वह परेशान होकर घर से बाहर गया। उसे तलाशते हुए पार्क तक गया। वैशाली एक बेंच पर बैठी थी। उसके साथ एक और महिला बैठी थी जो उम्र‌ में बड़ी थी। वैशाली रो रही थी वह महिला वैशाली को शांत करा रही थी। किशोर वैशाली के पास जाकर बोला,

"तुम बिना बताए यहाँ आ गईं।"

वैशाली की जगह उस महिला ने कहा,

"मैं रोज़ पार्क में योग करने आती हूँ। आज‌ आई तो इन्हें बेंच‌ पर बैठकर रोते हुए देखा। कल शाम भी जब मैं अपने पोते के साथ आई थी तब भी ये बेंच‌ पर बैठकर रो रही थीं। मेरे पोते ने पूछा तो एकदम से उठकर चली गईं। इन्हें कोई समस्या है?"

किशोर समझ नहीं पा रहा था कि उन्हें समस्या के बारे में कैसे समझाए। उस महिला ने कहा,

"मेरा नाम सुमन गुप्ता है। छह महीने पहले ही मैं अपने बेटे के पास रहने इस मोहल्ले में आई हूँ। पास ही मेरा घर है।"

"आपने वैशाली को संभाला उसके लिए धन्यवाद।"

कहकर किशोर ने वैशाली का हाथ पकड़ कर उसे उठाया और लेकर जाने लगा। सुमन ने कहा,

"देखिए मुझे पता नहीं है कि वैशाली के दुख का कारण क्या है पर ये अवसाद में है। मैं एक साइकोलॉजिस्ट रही हूँ। इसलिए कह रही हूँ कि इन्हें सही इलाज की ज़रूरत है।"

किशोर रुक गया। उसने कहा,

"मैम डॉ. माधव वार्ष्णेय से पिछले छह महीने से इलाज करा रहा हूँ। वैशाली किसी तरह का सहयोग ही नहीं कर रही है। बस अपने दुख में डूबी रहती है।"

सुमन ने कहा,

"मैं जानती हूँ कि एक अनजान से अपनी समस्या बताना आसान नहीं है। ये जगह भी इसके लिए मुनासिब नहीं है। मैंने आपको बताया कि मैं एक साइकोलॉजिस्ट रही हूँ। तीस साल मैंने साइक्राइटिस्ट डॉ. आसिफ अली के साथ काम किया है।"

किशोर ने डॉ. माधव से डॉ. आसिफ अली की बहुत तारीफ सुनी थी। अब उसे सुमन पर भरोसा हो गया था। उसने कहा,

"मेरा नाम किशोर पाठक है। पार्क के पीछे वाली गली में रहता हूँ। आप अगर चल सकें तो मेरे घर चलिए। आपको सारी बात बता दूँगा।"

सुमन ने कुछ सोचकर कहा,

"अभी तो मुमकिन नहीं है। आप मुझे अपना नंबर दे दीजिए। मैं फोन करके आ जाऊँगी।"

किशोर ने सुमन को अपना नंबर दे दिया। उसने कहा,

"अभी मोबाइल लेकर नहीं आया हूँ पर आप इस नंबर पर अपने नाम के साथ मैसेज भेज दीजिएगा।‌ मैं सेव कर लूँगा।"

किशोर वैशाली को लेकर घर चला गया।


सुमन हॉल में बैठी थीं। वैशाली उनके लिए कॉफी लेकर आई। सुमन सोच में डूबी थीं। किशोर ने उन्हें सारी बात बता दी थी। सुमन ने कहा,

"जो कुछ वरुण के साथ हुआ बहुत दुखद है। इंटरनेट के अपने फायदे हैं तो नुकसान भी। एक नुकसान तो यही है कि आज की युवा पीढ़ी एक वर्चुअल दुनिया में जी रही है। अपने आसपास के लोगों से कट कर मोबाइल या लैपटॉप पर एक अलग ही दुनिया में रहती है। वहीं उसकी सफलता असफलता निर्धारित होती है।"

उन्होंने कॉफी सिप करके आगे कहा,

"आजकल पैरेंटिंग की भी अपनी चुनौतियां हैं। बच्चों को इस सबसे दूर भी नहीं रखा जा सकता है। इसलिए उन्हें बहुत सोच समझकर छूट देनी पड़ती है।‌ ना बहुत अधिक रोक और ना ज़रूरत से ज़्यादा ढील।"

वैशाली चुपचाप उनकी बात सुन रही थी। उसने कहा,

"हमने बहुत अधिक ढील तो नहीं दी थी। समय समय पर टोकते रहते थे। वह संभल भी गया था। दोबारा पढ़ाई में मन लगाने लगा था लेकिन...."

कहते हुए वैशाली रोने लगी। किशोर उसे शांत करने लगा। वैशाली ने शांत होकर कहा,

"मुझसे गलती ये हो गई कि वरुण इतनी तकलीफ में था और मैं समझ नहीं पाई। वह अकेला रहना चाहता था और मुझे लगा कि यही उसके लिए ठीक है। वह अधिकतर अपने कमरे में रहता था। सिर्फ खाना खाने के लिए हमारे पास बैठता था। तब भी चुप रहता था। अब लगता है कि उसे उसके हाल पर छोड़ने की जगह पूछना चाहिए था कि बात क्या है। वह टालने की कोशिश करता पर मुझे सही बात पता करनी चाहिए थी।"

किशोर ने कहा,

"बस वैशाली इसी तरह खुद को दोष देकर परेशान होती रहती है। इतनी बार समझाया है कि इस तरह खुद को दोष मत दिया करो पर मानती नहीं है।"

सुमन ने कहा,

"वैशाली मैं भी इसी तरफ इशारा कर रही थी। हमको लगता है कि बच्चों को उनके हिसाब से जीने के लिए अकेला छोड़ देना अच्छा है। बच्चों को भी उनका स्पेस देना चाहिए पर इसके लिए उन पर से पूरी तरह ध्यान नहीं हटा लेना चाहिए।‌ बच्चे अपने दायरे में सिमट जाते हैं। उनके लिए घरवालों का महत्व बहुत कम हो जाता है। परिणाम यह होता है कि वो हमसे बहुत दूर चले जाते हैं। इतना कि मुश्किल वक्त में भी हम पर यकीन नहीं कर पाते हैं। अपनी लड़ाई खुद लड़ने की कोशिश करते हैं और जब थक जाते हैं तो गलत कदम उठा लेते हैं।"

सुमन रुकीं। उन्होंने कुछ ठहर कर कहा,

"वरुण ने अपनी मुश्किल का हल कलाई काट कर निकाला। ये हो सकता था कि वह तुम लोगों से बात करता और मदद मांगता।‌ ऐसा हुआ नहीं। अब जो भी है उस सच्चाई को स्वीकार कर जीना होगा पर इस तरह नहीं। तुम्हें खुद को संभालना होगा और आगे देखना होगा।"

"मेरी तो दुनिया ही लुट गई है। मेरे लिए अब आगे देखने को बचा क्या है?"

कहते हुए वैशाली की आँखें भर आईं। सुमन ने कहा,

"मुश्किल ज़रूर होगा पर अपने दुख को काबू में करके देखोगी तो ज़िंदगी का मकसद मिल जाएगा।"

"मुझसे अब कुछ नहीं होगा।"

वैशाली ने रोते हुए कहा। किशोर ने उसे समझाया,

"कर सकती हो वैशाली। प्लीज़ मेरे लिए तुम्हें ऐसा करना होगा।"

सुमन ने कहा,

"वैशाली कल दोपहर को तैयार रहना। मैं तुम्हें लेने आऊँगी। मेरे साथ चलना तुम्हें अच्छा लगेगा।"

सुमन ये कहकर चली गईं। किशोर देर तक वैशाली को समझाता रहा कि अगर कोई मदद कर रहा है तो उसकी बात माने। इस तरह से बची हुई ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती है। 


किशोर की एक ज़रूरी मीटिंग थी। ऑफिस जाने से पहले वह वैशाली को समझा कर गया था कि सुमन की बात मानकर उनके साथ चली जाना। एकबार आज़मा कर देखो। शायद कोई फायदा हो। उसके जाने के बाद वैशाली सोच रही थी कि क्या करे? वरुण के जाने के बाद से उसका किसी चीज़ में मन नहीं लगता था। हर वक्त दिल पर एक बोझ सा रहता था। इसके कारण वह बेचैन रहती थी। वह खुद भी अपनी इस स्थिति से परेशान थी पर चाह कर भी इससे निकल नहीं पा रही थी।

सुमन ने दोपहर में आने को कहा था पर वैशाली अभी तक तैयार नहीं हुई थी। किशोर के जाने के बाद से ही वह बेडरूम में लेटी हुई थी। कई बार मन में आया कि उठकर तैयार हो जाए पर उठने की इच्छा नहीं हुई। डोरबेल बजी तो वह उठकर बाहर गई। दरवाज़ा खोला तो सुमन सामने खड़ी थीं। उसे देखकर सुमन ने कहा,

"तुम तैयार नहीं हुई?"

वैशाली उन्हें अंदर लेकर आई। सोफे पर बैठाया। उनके सामने बैठते हुए बोली,

"आपने मेरे बारे में इतना सोचा उसके लिए बहुत धन्यवाद पर मैं कहीं जाने की स्थिति में नहीं हूँ।"

उसने रुककर सुमन की तरफ देखा फिर बोली,

"मैं जानती हूँ कि आप मेरी मदद करना चाहती हैं लेकिन सच तो यह है कि अब कोई भी चीज़ मुझे मेरे दुख से बाहर नहीं निकाल सकती है। आपको तकलीफ हुई उसके लिए माफी चाहती हूँ पर मैं चाहूँगी कि आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें।"

वैशाली अपनी बात कहकर चुप हो गई। कुछ देर सुमन चुप रहीं‌। वह वैशाली के चेहरे की तरफ देख रही थीं। कुछ सोचकर उन्होंने कहा,

"वैशाली मैं एक साइकोलॉजिस्ट रही हूँ। अपने करियर में मैंने अनुभव किया है कि अक्सर लोग ये मान लेते हैं कि अब इस दुख से छुटकारा नहीं है। सुनने में बुरा लगेगा पर अक्सर दुख भी एक नशे का काम करता है जिसमें डूबे रहने से इंसान को तसल्ली मिलती है।"

उनकी बात वैशाली को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,

"आपके पास अपने काम का अनुभव है पर आपकी ये बात ठीक नहीं है। दुख किसी को तसल्ली कैसे दे सकता है। इंसान तो दुख से छुटकारा पाना चाहता है।"

सुमन ने वैशाली के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा,

"अगर ऐसा है तो तुम क्यों अपने दुख से बाहर नहीं निकलना चाहती हो?"

ये सवाल सुनकर वैशाली चुप हो गई। कुछ क्षणों के बाद बोली,

"मैं चाहती हूँ...पर इसका कोई रास्ता नहीं है।"

"रास्ता है वैशाली पर तुम उस पर चलने से मना कर रही हो‌‌। सबसे पहली शर्त ये है कि अगर कोई मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो उस पर यकीन करना चाहिए।"

सुमन अपनी बात कहकर चुप हो गईं। वैशाली उनकी बात पर विचार कर रही थी। सुमन ने कहा,

"वैशाली मेरा और तुम्हारा कोई संबंध नहीं है। मेरा जो काम रहा है उसमें मैंने बहुत से लोगों की मदद की है। इसलिए तुम्हें पार्क में दुखी बैठे देखा तो किशोर से तुम्हारे बारे में बात की। मुझे लगा कि तुम्हारी भी मदद कर सकती हूँ इसलिए तुम्हें लेकर एक जगह जाना चाहती थी। अगर तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहती हो तो कोई बात नहीं है।"

सुमन उठकर खड़ी हो गईं। वह मेन डोर की तरफ बढ़ रही थीं तभी वैशाली ने कहा,

"आप बस मुझे पाँच मिनट दीजिए मैं आती हूँ।"

सुमन वापस बैठ गईं। वैशाली तैयार होने चली गई।


कैब एक खूबसूरत मकान के सामने रुकी। सुमन के साथ वैशाली कैब से उतरी। वैशाली ने मकान के बाहर लगे प्लाक पर लिखे नाम को पढ़ा। 

रहमत मंज़िल 

नाम हिंदी और उर्दू में लिखा था। सुमन ने कहा,

"मैं तुम्हें ज़ेबा से मिलवाने लाई हूँ। कल मेरी उससे बात हुई थी।"

सुमन सिक्योरिटी गार्ड के पास गईं। उसने गेट खोलकर उन्हे और वैशाली को अंदर जाने दिया। भीतर पहुँच कर सुमन ने कॉल बेल बजाई। एक लड़की ने दरवाज़ा खोला। उन दोनों को बैठाकर अंदर चली गई। वैशाली सब कुछ ध्यान से देख रही थी। घर को देखकर लगता था कि रहने वाले रईस हैं। कुछ ही देर में एक औरत उन लोगों के पास आई। वह सुमन से गले लगकर मिली। सुमन ने कहा,

"ज़ेबा ये ही है वैशाली। कल मैंने इसके बारे में ही बात की थी।"

वैशाली ने खड़े होकर नमस्ते किया तो ज़ेबा ने उसे भी गले लगा लिया। उसके बाद वह सामने बैठ गई। उसने वैशाली से कहा,

"हम दोनों का दुख एक ही है। मैंने अपनी बेटी को खोया और तुमने अपने बेटे को। फर्क इतना है कि मेरी बेटी रोड एक्सीडेंट में मारी गई थी और तुम्हारे बेटे ने...."

ज़ेबा आगे नहीं बोली। वैशाली की आँखें नम हो गई थीं। ज़ेबा ने आगे कहा,

"वजह जो भी हो पर औलाद को खोने का गम दिल को चीर देता है। दुनिया बेमानी लगने लगती है। मैं तुम्हारा दर्द अच्छी तरह समझती हूँ।"

वैशाली की आँखों से आंसू झर रहे थे‌। ज़ेबा ने कहा,

"कोई गम कितना भी बड़ा हो पर ज़िंदगी भर उसे अपने ऊपर हावी रहने देना ठीक नहीं है। ये बात मैंने सुमन मैडम से सीखी है। मेरी बेटी सोफिया की मौत के बाद मेरे लिए ज़िंदगी जहन्नुम सी हो गई थी। दो साल मैंने उसी दर्द में डूबे हुए बिताए। घरवालों की हर कोशिश बेकार हो गई थी। मेरी वजह से सब परेशान थे।"

ज़ेबा ने कुछ ठहर कर कहा,

"मेरे शौहर मुझे डॉ. आसिफ अली के पास ले गए। वहाँ सुमन मैडम ने मेरी काउंसलिंग की। मैंने भी डॉ. आसिफ अली और सुमन मैडम की बातों पर अमल किया। सुमन मैडम ने समझाया कि दुख में डूबे रहने की जगह उससे बाहर निकलना बहुत ज़रूरी है। मैंने कोशिश की‌। घरवालों का साथ भी मिला। मैं अपने दुख से बाहर निकल आई। सोफिया की याद तो अभी भी दिल में है। उसकी याद आती है तो आँखें भर आती हैं लेकिन मैंने अपने आप को एक मकसद दे दिया है।"

वैशाली ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। उसने कहा,

"कैसा मकसद?"

अब तक चुप बैठी सुमन बोलीं,

"सोफिया रोड एक्सीडेंट में मारी गई थी। उस समय वह स्कूटी पर थी और उसने हेलमेट नहीं लगाया था। ज़ेबा ने लोगों को खासकर जवान बच्चे बच्चियों को रोड सेफ्टी के बारे में शिक्षित करना शुरू किया है‌। अक्सर स्कूल और कॉलेजों में जाकर बच्चों को रोड सेफ्टी के बारे में बताती है। इस विषय पर ऑर्टिकल्स लिखती है।‌ इसका एक पॉडकास्ट है जिसके माध्यम से यह उन लोगों को सामने लाती है जो लापरवाही के कारण दुर्घटना का शिकार हुए हैं।"

वैशाली प्रशंसा भरी नज़रों से ज़ेबा को देख रही थी। ज़ेबा ने कहा,

"सोफिया तो वापस नहीं आ सकती है पर एक बात की तसल्ली रहती है कि मेरे समझाने से शायद कोई और बच्चा एक्सीडेंट का शिकार होने से बच जाए।"

वैशाली के चेहरे से लग रहा था कि ज़ेबा से मिलकर उसमें कुछ बदलाव आया है। ज़ेबा ने उसे समझाया,

"वरुण जिस तनाव से गुज़रा था उससे कई और बच्चे गुज़र रहे हैं। आज के समय में बच्चे अधिकतर आभासी दुनिया में रहते हैं। उन्हें ये बताना ज़रूरी है कि दुनिया इंटरनेट पर ही नहीं है। उनके आसपास जो कुछ है वही वास्तविक दुनिया है। ज़िंदगी को सब्सक्राइबर्स, फॉलोअर्स, लाइक्स और कमेंट्स से नहीं आंका जाना चाहिए। उन्हें बताना होगा कि एक पर्दे के पीछे छुपकर अगर कोई तुम्हें ट्रोल करता है तो उसे नज़रअंदाज़ करना ही ठीक है। उसके कमेंट को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए।"

ज़ेबा ने जो कुछ बताया वैशाली को अच्छा लगा। कुछ देर तक वह ज़ेबा के साथ बात करती रही।


तीन महीने बीत गए थे। वैशाली की स्थिति में बहुत सुधार हुआ था। अब वह डॉ. माधव की हर बात मानती थी। सुमन और ज़ेबा से अक्सर बात करती थी।‌ वह अब अपने दुख से बाहर निकल गई थी। वह उस मकसद पर अमल करने की तैयारी कर रही थी जो ज़ेबा ने उसे दिया था।‌ 

अपने मकसद की शुरुआत वैशाली ने वरुण के स्कूल से ही की। उसने बच्चों को समझाया कि उन्हें इंटरनेट का इस्तेमाल अपने भले के लिए करना चाहिए। अगर सोशल मीडिया आपको वास्तविकता से दूर ले जाए तो कुछ समय के लिए उससे दूर हो जाना चाहिए। कोई भी परेशानी हो उसे अपने माता पिता के साथ बांटना चाहिए।